एक अच्छे नेता में कौन से गुण होने चाहिएं- सदगुरु

सद्‌गुरु ।


क्यों होती है हमें एक नेता की जरूरत? और एक अच्छा नेता किसे कह सकते हैं? जानते हैं कि कैसे खुद से भी बड़ा लक्ष्य लेकर चलना और व्यक्तिगत सीमाओं से परे उठ जाना ही किसी भी नेता के जरुरी गुण हैं।


नेता को कार्यों को सम्भव बनाना चाहिए
नेतृत्व मुख्य रूप से कार्यों को करने या संभव बनाने का विज्ञान है। लेकिन मुझे लगता है कि हमारे देश में स्थिति उल्टी है। यहां अगर आप काम को होने से रोक सकते हैं तो आप नेता बन सकते हैं। अगर आप काम-काज ठप्प करा सकते हैं, शहर बंद कर सकते हैं, सडक़ रोको, रेल रोको जैसे आंदोलन सफल करा सकते हैं, तो इसका मतलब है कि आप नेता बन सकते हैं। दुर्भाग्य की बात है कि देश को रोकने की कला नेता बना रही है।


नेता के पास खुद से भी बड़ा लक्ष्य होना चाहिए
आखिर नेता बनने का मतलब क्या है? कोई भी शख्स तब तक खुद को नेता नहीं कह सकता, जब तक कि उसके जीवन में कोई ऐसा लक्ष्य न हो जो उससे भी बड़ा हो।


नेता की उपस्थिति इसलिए जरूरी हो जाती है, क्योंकि लोग सामूहिक रूप से जहां पहुंचना चाहते हैं, वहां पहुंच नहीं पा रहे। वे पहुंचना तो चाह रहे हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि वहां तक पहुंचा कैसे जाए।
अपनी व्यक्तिगत जीवन-यापन की चिंताओं से परे जाकर वह जीवन को एक बड़े फ लक पर देख रहा होता है। नेता का मतलब है: एक ऐसा व्यक्ति जो उन चीजों को देख और कर सकता है, जो दूसरे लोग खुद के लिए नहीं कर सकते। ऐसा न हो तो आपको नेता की जरूरत ही नहीं है। अगर एक नेता भी वही चीजें कर रहा है, जो हर कोई कर रहा है तो आपको नेता की जरूरत ही नहीं है। अगर उसकी भी वही सोच है जो हर किसी की है तो आपको नेता की जरूरत ही नहीं है। तब तो नेताओं के बिना हम और बेहतर कर सकते हैं। नेता की उपस्थिति इसलिए जरूरी हो जाती है, क्योंकि लोग सामूहिक रूप से जहां पहुंचना चाहते हैं, वहां पहुंच नहीं पा रहे। वे पहुंचना तो चाह रहे हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि वहां तक पहुंचा कैसे जाए। इसीलिए एक नेता जरूरी हो जाता है।
नेता का व्यक्तिगत सीमाओं से आगे बढना
व्यक्ति नेता तब बनता है, जब वह अपनी व्यक्तिगत सीमाओं से आगे बढक़र सोचने लगता है, महसूस करने लगता है, और कार्य करने लगता है।


व्यक्ति नेता तब बनता है, जब वह अपनी व्यक्तिगत सीमाओं से आगे बढक़र सोचने लगता है, महसूस करने लगता है, और कार्य करने लगता है।
ऐसा कई बार वह किसी बड़े स्तर पर हो रहे अन्याय की वजह से, तो कई बार संघर्ष के पलों में वह अपनी व्यक्तिगत सीमाओं से आगे बढ़ जाता है। कई बार कुछ लोगों के भीतर की करुणा इतनी शक्तिशाली हो जाती है कि वे अपनी सीमाओं से परे जाकर सोचने लगते हैं और खुद को ऐसे कामों और विचारों के साथ जोड़ लेते हैं जो उनके निजी स्वार्थों से संबंधित नहीं होते। या फिर कोई इंसान निजी महत्वाकांक्षा के कारण भी नेता बन सकता है। शक्तिशाली बनने की उसकी प्रबल महत्वाकांक्षा उसे आगे बढ़ाती है और वह नेता बन जाता है। कई बार किसी खास परिवार में जन्म लेने से भी आप नेता हो जाते हैं।
नेता के लिए भौतिकता से परे का अनुभव जरुरी है
लेकिन कोई शख्स सही अर्थों में तब तक नेता बन ही नहीं सकता जब तक उसके जीवन का अनुभव और जीवन को देखने का तरीका उसकी व्यक्तिगत सीमाओं से परे न चला जाए। यानी नेता बनना या कहें नेतृत्व एक स्वाभाविक प्रक्रिया तब तक नहीं होगी, जब तक कि वह जीवन को देखने, समझने व महसूस करने के तरीके में एक व्यक्ति की सीमाओं से परे नहीं चला जाता।


अगर हमें आध्यात्मिक तत्वों को मानवीय अनुभव में लाए बिना नेता पैदा करने हैं तो यह एक जबरदस्ती वाली बात होगी। जब मैं आध्यात्मिक तत्वों को जीवन के अनुभव में लाने की बात कहता हूं तो मैं किसी धार्मिक समूह में शामिल होने की बात नहीं कर रहा।
अगर किसी तरह से आपने जीवन को भौतिकता की सीमाओं से परे महसूस करना शुरु कर दिया, तो आपमें बिना किसी खास कोशिश के, सहज रूप से नेतृत्व का गुण खिल उठेगा। क्योंकि तब आपका सरोकार केवल उन भौतिक सीमाओं से नहीं रह जाता, जिनसे आपके 'मैं' की पहचान जुड़ी हुई है। हम ऐसा होने का इंतजार कर सकते हैं कि अचानक कभी ऐसा हो जाए। कभी ऐसा हो सकता है कि यह अपने आप ही आपके साथ हो जाए। अगर हमें आध्यात्मिक तत्वों को मानवीय अनुभव में लाए बिना नेता पैदा करने हैं तो यह एक जबरदस्ती वाली बात होगी। जब मैं आध्यात्मिक तत्वों को जीवन के अनुभव में लाने की बात कहता हूं तो मैं किसी धार्मिक समूह में शामिल होने की बात नहीं कर रहा। मैं बस आपकी सोच और अनुभव के फलक को विस्तृत करने की बात कर रहा हूं। अगर आप अपनी अनुभूतियों के फलक का विस्तार नहीं करते हैं, तो नेतृत्व आपके लिए एक थोपी गई चीज होगी। यह फि र किसी न किसी चीज से संचालित हो रही होगी, यह कोई स्वाभाविक प्रक्रिया नहीं होगी। अगर नेता बनना एक स्वाभाविक घटना की तरह घटित हो, तो नेतृत्व आपके भीतर खुद ही प्रकट होने लगेगा, और वह भी उसी हद तक जिस हद तक जरुरी हो। जरुरत से आगे जाकर नेतृत्व खुद को आप पर नहीं थोपेगा। अगर कोई बिना आध्यात्मिकता के किसी नेतृत्व की स्थिति में पहुंचता है तो वह बड़ी आसानी से एक तानाशाह में तब्दील हो सकता है। सौभाग्य से हमेशा ऐसा नहीं होता है। 
 
 


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